Friday, October 6, 2023

हे मां!!!

                                         



                           

ओ मां!!!
तुम हर पल महकती हो मुझमें इत्र की तरह
बहती हो निरन्तर, मेरी रग-रग में रक्त की तरह।
तुम्हारी बातें निकाल देती हैं मेरे जीवन के काटें
तुम्हारा स्नेह अनवरत मुझे,नित नई खुशियाँ बाँटे
तुम्हारे आशिर्वाद से भींगा, मेरा ये तन-मन है।
ओ मां!!! तुझसे ही तो मिला मुझे ये जीवन है।

- Rajlakshmi Nandini G

Sunday, November 6, 2011

हे माँ! तेरा वो सलोना रूप, मै एक बार फिर से पाना चाहती हूँ

जो जाने कहाँ खो गया है?
मै एक बार फिर से तेरी क्रोड़ में बैठ,
जीवन की दुविधाओ से दूर होकर,
खुशियों के वैभव को पाना चाहती हूँ;
जो तेरे स्नेह में लिप्त हुआ है.
मै एक बार फिर से रोकर चुप होना चाहती हूँ,
तेरी मीठी बातों को सुनने के लिए ;
एकबार फिर हँसना चाहती हूँ.
तेरी ही संतोषप्रद ख़ुशी के लिए,
एकबार फिर से कुछ सीखना चाहती हूँ,

जिन्दगी को समझने के लिए.
एकबार फिर वैसे ही सोना चाहती हूँ,
तेरी भीनी धीमी लोरी सुनने के लिए.
माँ तुमने ये कैसे सोच लिया की-
मै तुमसे अलग हूँ या अलग हो जाउंगी???
ये सोचने से पहले ये तो सोचा होता की-
मै तेरा ही प्रतिरूप हूँ,तेरे ही उदर से जन्मी,
हाड़-मांस की लोथ हूँ.
तेरा वजूद मेरे वजूद में है समाया हुआ.
साथ ही पिता की स्नेह्छाया में
लिपटाया हुआ.
मै एक नन्हा सा फुल हूँ,
जिसे बड़े मन से खिलाया तुमने,
पर तुमने ये ना सोचा की फुल खिलेगा,

तो उसकी खुशबु फैलेगी ही

- Rajlakshmi Nandini G[8/01/99]